सदका - ए - फितर की मिक़दार, सदका - ए - फितर की अहमियत Sadaqa Al-Fitr ki miqdar Sadaqa Al-Fitr ki ahemiyat सदका - ए - फितर का अर्थ इस्लामिक महीने रमजान के समाप्त होने से कुछ दिनों पहले दिया जाने वाला दान | सदका - ए - फितर की अहमियत सदका - ए - फितर की अहमियत इस क़दर ज्यादा हैं के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान हैं के ईद उल फ़ित्र से पहले पैदा होने वाले एक दिन के बच्चे का फ़ितराना अदा करना भी लाजिम हैं हज़रत अब्दुल्लाह इबने अब्बास "رضي الله عنهم" से रिवायत है की रसूलुल्लाह स ल्लाहु अलैहि वसल्लमने सदका - ए - फितर को जरुरी करार दिया जो रोजेदारों के लिए लगव (बकवास ) और बेहयाई की की बातों से पाकीज़गी का जरिया है और मिसकीनों (poor) के लिए खाने का इंतिज़ाम है ये हदीस से सदका - ए - फितर को अदा करने से दो फ़ायदे हासिल होंगें ...
शब-ए-कदर क्या है ? शब-ए-क़दर कब है(निशानी), शब-ए-क़दर की फ़ज़ीलत, शब-ए-क़दर के आमाल, शब-ए-क़दर की दुआ, शब्-ए-क़दर की वजह, क़ुरआन में शब्-ए-क़दर।
शब-ए-कदर एक इस्लामिक त्यौहार है.
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| Shabe Qadar |
इस्लाम में रमजान मुबारक के तीसरे अशरे की 21, 23, 25, 27 और 29 वीं शब {रात } में शबे -ए -केद्र की रात को खोजने का आदेश दिया जाता है लेकिन 27 की रात को सर्वोच्च माना जाता है जिस को इबादत की रात से जाना जाता हैं.
इस रात में पवित्र क़ुरान को लोह-इ-मेहफ़ूज़ {संरक्षित प्लेट }से फरिश्ता {एंजेल } के द्वारा अल्लाह के पैंगबर मोहम्मद ﷺ पे उतारा गया.
इस रात में मुसलमान सूर्यास्त से सूर्योदय तक अल्लाह की इबादत करते हैं ,नमाज़ पढ़ते हैं ,क़ुरान की तिलावत ( पाठन )करते हैं और अपने गुनाहों (पाप) के लिए अल्लाह से क्षमा मांगते हैं.
शब ए क़द्र की निशानी क्या है ?
रसूले करीम सलल्लाहु अलहि व् सलम ने फ़रमाया (कहा )the prophet:
- (हदीस ) में ने ख़ाब (सपना ) में शब ए क़द्र देखि ,मगर फिर मुझे भुला दिया गया -ये रात रमज़ान के आखरी अशरे की ताक ({विषम}21, 23, 25, 27और 29)रातों में है - ये रात पाक और बा-बरकत हे ,न ज्यादा गर्म होती हे और न ही ठंडी -इस रात शैतान नहीं निकलता ,यहां तक के सुबह सादिक न हो जाये ( सुप्रभात ) (पुस्तक -मुसनदे अहमद )
- (हदीस ) इस रात के बाद वाली सुबह जब सूरज निकलता हे तो उस में गर्मी नहीं होती। (पुस्तक -मुस्लिम शरीफ़ )
इस रात की फजीलत क्या है ?
रसूले करीम सलल्लाहु अलहि व् सलम ने फ़रमाया (कहा ):
" जो शख्स शब् ए क़द्र में ईमान की हालत में और सवाब की नियत से
(इबादत के लिए )खड़ा हो उसके पिछले तमाम गुनाह (पाप )माफ़ करदिये जाते हैं " (पुस्तक-बुखारी शरीफ़ )
अल्लाह (सर्वशक्तिमान )ने इस रात की फजीलत (महानता )का वर्णन
करने के लिए क़ुरआन में स्थायी रुप से एक सूरत (पाठ)को उतारा जिस को " सुरत अल- क़द्र" के नाम से जाना जाता है
शब्-ए-क़द्र में क्या करे ? शब्-ए-क़दर के आमाल
सबा ए क़द्र एक ईनाम हे अल्लाह (सर्वशक्तिमान ) की तरफ से,खुश क़िस्मत वो हे जो शब् ए क़द्र पाएं और इबादत ,तिलावत, ज़िक्र और इस्तिगफार ( माफ़ी ) से उसका हक़ अदा करें
- नमाज़ पढ़े
- क़ुरान की तिलावत करें
- ज़िक्र करें (अल्लाह को याद करना )
- सलातुत तसबीह पढ़े
शब्-ए-क़दर की एक खास दुआ
इस रात की दुआ रसूले करीम सलल्लाहु अलहि व् सलम ने सिखाइ :
" اللهم انك عفوا تحب العفو فاعف عني "
" अल्लाहुम्मा इंनक अफुव्वुन तुहिब्बुल अफ़व फअफु अन्नी "
" અલ્લાહુમ્મા ઇન્નક અફૂવવુંન તુહીંબ્બુલ અફવ ફઅફૂ અનની "
(पुस्तक -तिरमिज़ शरीफ )
शब् ए क़द्र देने का क्या कारण है ?
मोहम्मद ﷺ ने एक दिन बनी-इसराइल के चार(4) पैगम्बरो
- (1) हज़रत अय्यूब
- (2) हज़रत ज़करिया
- (3) हज़रत हिज़क़ील
- (4) हज़रत यूशअ बिन नून (علىهم السلام)
का ज़िक्र (उल्लेख) फ़रमाया जो अस्सी-अस्सी (80) वर्ष तक अल्लाह(सर्वशक्तिमान ) की इबादत में मशगुल(व्यस्त) रहे पल झपक ने के बराबर भी अल्लाह(सर्वशक्तिमान ) की नाफ़रमानी नहीं की इस पर सहाबा رضي الله عنهم (अनुयायी) को आश्चर्य हुआ तो हज़रत जिब्राईल عليه السلام (एंजेल) सुरह-अल-क़द्र लेकर उतरे और मोहम्मद ﷺ की सेवामें हाजिर हुए और अर्ज किया आप की उम्मत उन् पैगम्बरो की अस्सी वर्ष की इबादत से ता-अज्जुब(आश्चर्य) करतीहै अल्लाह (सर्वशक्तिमान) ने आपको एक ऐसी रात दी है जिसमे इबादत करना अस्सी वर्ष की इबादत से बेहतर है। इसके बाद जिब्राईल عليه السلام(एंजेल) सुरह-अल-क़द्र मोहम्मद ﷺ को सुनाई।
(पुस्तक-रूह अल-मआनी)
सुरह-अल-क़द्र
1 إنا أنزلناه في ليلة القدر
हमने इस क़द्र की रात में अवतरित किया(क़ुरआन)
2 وما أدراك ما ليلة القدر
और तुम्हें मालूम कि क़द्र की रात क्या है ?
3 ليلة القدر خير من الف شهر
क़द्र की रात उत्तम है हज़ार महीनों से ,
4 تنزل الملائكة والروح فيها بإذن ربهم من كل امر
उसमें फ़रिश्तेंऔर रूह ( फ़रिस्तों के सरदार )
हर महत्वपूर्ण मामलें में अपने रब की अनुमति से उतरते है


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